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Udaipur. लेकसिटी में लोग मुझे चलता-फिरता ब्लड बैंक कहते है। ये शरीर वैसे चलता-फिरता ब्लड बैंक ही तो है। कुदरत की महर है कि 3 महीने के अंतराल में ये फिर से बन जाता है। रक्तदान करने से हार्ट सहित 10 बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। जीवन में रक्तदान से बढक़र कोई दान नहीं है इसलिए आमजन को इस महायज्ञ में बढ़-चढक़र हिस्सा लेना चाहिए। ये बात उदयपुर के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, सहवृत्त पार्षद एवं रक्तदान के क्षेत्र में अपनी अनूठी पहचान रखने वाले रवींद्र पाल सिंह कप्पू (Ravindrapal singh Kappu, Udaipur) ने कही। कप्पू हाल ही में 100 वीं बार रक्तदान कर नया कीर्तिमान रच चुके है। कप्पू दावा करते है कि उन्होंने अब तक 100 बार आरएनटी के ब्लड बैंक में ही रक्तदान किया है जिसके सबूत उनके पास मौजूद है। इसके अलावा 400 से अधिक ब्लड बैंक के शिविर लगवाए है और करीब 30 से 40 हजार लोगों को इस महाअभियान में जोड़ चुके है। इस काम में उनके बेटे शिवांस अरोड़ा और आयुष अरोड़ा भी उनके साथ है। शिवांस 34 बार और आयुष 29 बार रक्तदान कर चुके है। उनकी सोच है कि हर अच्छे काम की शुरूआत अपने घर से ही हो।

(Ravindrapal singh Kappu, Udaipur)


पहली बार मौसी को दिया ब्लड


कप्पू (Ravindrapal singh Kappu, Udaipur) का कहना है कि जब वे 18 साल के थे तब उनकी मौसी चित्तौडग़ढ़ से यहां आई थी। उनको फ्रेश ब्लड की जरूरत थी। वो क्रिकेट का मैच खेल रहे थे। नानाजी के कहने पर उस वक्त पहली बार रक्तदान किया, जो आज तक जारी है। लेकिन जब भी मौसी मिलती तो यही कहती थी कप्पू (Ravindrapal singh Kappu, Udaipur) तेरी वजह से आज मैं जिंदा हूं। तब लगता कि वाकई मैंने अच्छा काम किया है। इसके बाद तो कई बार रक्तदान किए। हर बार रक्तदान करके खुद को ऊर्जावान महसूस करता हूं। रक्तदान करने से कमजोरी और बीमारियों की बातें महज एक भ्रांतियां है। जबकि असल में जैसे गाड़ी का ऑयल चैंज करने पर उसका एवरेज बढ़ जाता है उसी प्रकार से शरीर का एवरेज भी बढ़ जाता है। वे बताते है कि उनको पहली बार गुरुद्वारे की एक संस्थान ने सम्मानित किया था।


एमबी में हर साल 25 हजार रक्त की जरूरत


रवींद्र पाल सिंह कप्पू (Ravindrapal singh Kappu, Udaipur) का कहना है कि अकेले एमबी हॉस्पीटल में करीब 25 हजार यूनिट रक्त की जरूरत रहती है। लोगों में जागरूकता के कारण अभी 22 हजार यूनिट के करीब आंकड़ा पहुंच गया है कि लेकिन अभी भी 3 हजार यूनिट के करीब अभी तक भी कमी है। उनका कहना है कि इसके लिए रिश्तेदार और परिचित मुंह ताकने के बजाय बढ़-चढक़र बीमार व्यक्ति के लिए रक्तदान करें, पिछे नहीं हटे। ये तो प्रकृति प्रदत्त हर 3 महीने में बनने वाला एक तत्व है।