राजस्थान के कश्मीर उदयपुर के बारे में अगर ये कहे तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि “गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त” (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं)। 
कन्टेन्ट : योगेश सुखवाल, ड्रोन पर्सन : रामनिवास यादव

उदयपुर यूँ तो किसी आम शहर की भांति ही है मगर इसकी विशिष्ट पहचान है झीलें। अरे वही झीलें मदमाती, इठलाती, बलखाती हुई कभी पिछोला बन जाती है तो कभी फतहसागर और कभी स्वरूपसागर। 
मैं अपने शब्दों में कहूँ तो ये झीलें इस लिए भरती है ताकि आन, बान और शान के लिए रक्त सींचकर रजवाड़ी शौर्य का बखान करती संस्कृति को जल हपाड़ा (जल स्नान) करा सके। जैसे आग की मानिंद धधकते केशरिया ध्वज को हिये में लपाकर कह रही हो आओ कुछ देर अपने आँचल में शीतलता का अहसास करवाऊं। 
मैं इन झीलों को देखकर सोचता हूँ कि रेगिस्तानी पथरीली, पहाड़ी और मरू भूमि है। ऐसे कैसे हो सकता है कि प्रकृति इतनी मेहरबान हो कि विदेशी भी खिंचे चले आते है। फिर इतिहास के पन्ने पलटकर देखता हूँ तो लगता है ये वहीं भूमि है जिसको महाराणा ने अपने रक्त से तिलक किया। उनकी बहादुर सेनाओं ने पग पग मौत को अंगीकार किया। ये वहीं भूमि है जिस पर महादेव स्वयं एकलिंग नाथ बनकर विराजमान है। शौर्य की चीखे प्रकृति को तो नचा ही सकती है ना। इसलिए जब जब भी हमारे मेवाड़ पर किसी राजा महाराजा से दीवान का पद स्वीकार किया महादेव को जलाभिषेक करते हाथों से सबसे पहले जल को सहेजने का संकल्प उठाया।
आज हम उन्ही संकल्प को शब्दों में नहीं बल्कि तस्वीरों में बयां करेंगे। 
ड्रोन पर्सन रामनिवास यादव के बेहतरीन अनुभव से शहर की खूबसूरती, मेवाड़ी संस्कृति, झूले झूलती झीलों के वैभव का बखान करते कुछ चुनिंदा फोटो को हम यहां प्रकाशित कर रहे है। देखिए और खुद ही जानिए की ईश्वर ने हमें प्रकृति का एक खजाना अता किया है।