The Udaipur Updates special Story
-4 लाख वोटों से जीतकर बनाया था वल्र्ड रिकॉर्ड
- – 2 दशक से हर सरकार में मंत्री रहे पासवान
- राजनीति में 50 साल की विधायकी और सांसदी। हर सरकार में कोई न कोई मंत्री। ये एक ऐसी असाधारण योग्यता को इंगित करता है कि या तो कोई मां के पेट से ही लिखवाकर आता है या फिर वो राम विलास पासवान जैसा विरला ही होता है। रामविलास पासवास के निजी जीवन में कई तरह की उलझने थी। इसके बावजूद ये उलझने कभी उनका रास्ता नहीं रोक पाई। और अगर किसी उलझन ने राम विलास पासवान का रास्ता रोका तो खुद-ब-खुद ही हट गई। इनके आगे अजित सिंह भी चित्त हो गए। यहीं नहीं देवगौड़ा-गुजराल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे कई प्रधानमंत्रियों को साधने जैसा असाधारण काम भी पासवाल ने किया था। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि रामविलास पासवान का निजी जीवन कैसा था, रामविलास पासवान ने कितनी शादियां की, बिहार पुलिस की नौकरी छोडऩे के बाद वो कैसे राजनीति में आए, राजनीति में उनको मौसम वैज्ञानिक किस लिए कहा जाता था आदि।
पासवान का निजी जीवन
कहते है बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव के समय उनके बेटे चिराग पासवान ने तेजस्वी और तेज प्रताप पर टिप्पणी शुरु कर दी। लालू के बेटों ने जवाबी हमला करते हुए रामविलास की दूसरी शादी का हवाला दिलाया तो चिराग ने चुप्पी साध ली। दरअसल ये इसलिए हुआ कि रामविलास पासवान ने दो शादियां रचाई थी। राजकुमारी देवी से पहली शादी जिनसे उनको दो पुत्रियां है। इसके बाद उन्होंने रीना शर्मा से शादी की जिनसे चिराग पासवान और एक बेटी है। राजनीति में यह कई बार ऐसा हुआ कि रामविलास को अपनी पहली पत्नी, दोनों बेटियों और कम-से-कम एक दामाद के कारण चुप रहना पड़ा। पिछले चुनाव में ही उन्हें आखिरी वक्त में मुजफ्फरपुर की एक सीट से अपना उम्मीदवार बदलकर, एक दामाद को खड़ा किया। वजह ये रही कि दामाद ने काफी हंगामा मचा दिया था। हालांकि उनका नतीजा ये हुआ कि दामाद की तो जमानत जब्त हो गई लेकिन पुरानी उम्मीदवार निर्दलीय ही जीत गई।
पहुंचे हुए राजनेता हैं रामविलास
निजी जीवन को लेकर होने वाली टीका-टिप्पणी के बावजूद, रामविलास पासवान दरअसल बहुत पहुंचे हुए राजनेता हैं। 50 साल की विधायकी और सांसदी ही नहीं, 1996 से सभी सरकारों में मंत्री रहना, एक ऐसी असाधारण योग्यता है जिसके आगे अजित सिंह भी चित्त हो गए। देवगौड़ा-गुजराल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे अनेक प्रधानमंत्रियों को साधना साधारण काम नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं पर ख़ासा ध्यान दिया है और इतने लंबे समय में उनके कार्यकर्ताओं या समर्थकों की नाराजग़ी की कोई बड़ी बात सामने नहीं आई है, जो मामूली बात नहीं है. वे जब रेल मंत्री बने तो उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर में रेलवे का क्षेत्रीय मुख्यालय बनवा दिया। अपने पिता की बनाई मज़बूत राजनैतिक ज़मीन को हर बार कुछ-कुछ गंवाते अजित सिंह तो अब सरकार और संसद से बाहर हो चुके हैं, पर एक कमजोर दलित परिवार में जन्मे रामविलास जी अपनी राजनैतिक ज़मीन न सिर्फ़ बचाए हुए हैं, बल्कि बढ़ाते भी जा रहे हैं। 2019 के आम चुनाव से पहले एक और पैंतरा लेकर नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे हार्ड टास्कमास्टरों को भी उन्होंने मजबूर कर दिया। बिहार में लोकसभा की छह सीटों पर लडऩे का समझौता करने के साथ, असम से ख़ुद रा’यसभा पहुंचने का इंतज़ाम करना कोई मामूली बात नहीं है।
इसलिए कहते थे मौसम वैज्ञानिक
रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर पांच दशक से भी पुराना रहा है। वे केंद्र की हर सरकार में मंत्री रहे। पांच दशकों में रामविलास पासवान 8 बार लोकसभा के सदस्य रहे। पासवान उस वक्त बिहार विधानसभा के सदस्य बन गए थे, जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अपने छात्र जीवन में ही थे। इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस सरकार से लडऩे से लेकर अगले पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ, तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे। 1977 के लोकसभा चुनाव में ही हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े पासवान ने चार लाख से ’यादा वोटों से जीत दर्ज कर वल्र्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद 2014 तक उन्होंने आठ बार आम चुनावों में जीत हासिल की। फिलहाल वे रा’यसभा के सदस्य थे।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर 1969 में तब शुरू हुआ था, जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। खगडिय़ा में एक दलित परिवार में 5 जुलाई 1946 को जन्मे रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे। पासवान ने इमरजेंसी का पूरा दौर जेल में गुजार चुके थे। इमरजेंसी खत्म होने के बाद पासवान छूटे और जनता दल में शामिल हो गए। जनता दल के ही टिकट पर उन्होंने हाजीपुर संसदीय सीट से ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
वीपी सिंह की सरकार में पहली बार कैबिनेट में
1977 की रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान फिर से 1980 और 1989 के लोकसभा चुनावों में जीते। इसके बाद बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार। इसमें उन्हें पहली बार कैबिनेट मंत्री बनाया गया। अगले कई सालों तक विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली। इस बीच, वे भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे और केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे। पासवान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे हैं।
एनडीए छोडक़र आए थे फिर वापस
रामविलास पासवान ने 2002 के गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी वाली सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया था। इसके बाद पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे। हालांकि, 2014 आते-आते पासवान एक बार फिर यूपीए का साथ छोडक़र एनडीए में शामिल हो गए। 2014 और फिर 2019 में बनी नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में अहम मंत्रालय दिए गए।