सिद्ध चौक में दर्शन देती है मां भगवती, गरबियों की थाप पर थिरकते है कदम, मूर्ति नहीं कलश की करते है पूजा

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अनूठे गरबा : भट्टियानी चौहट्टे में पिछले 300 सालों से निभाई जा रही है परंपरा, भट्ट मेवाड़ा समाज के लोग लेते है बढ़-चढक़र हिस्सा
Udaipur News. हर में इन दिनों गरबा आयोजन की धूम मची है। कई आयोजन ऐसे हाइटेक स्तर पर हो रहे है जिसको देखकर लगता है हम गुजरात में आ चूके है। लेकिन हैरत की बात ये है कि हाइटेक गरबा आयोजन के बीच भट्टियानी चौहट्टे में नंदकुमार जी के चौक में पिछले 300 सालों से परंपरागत तरीके आयोजित हो रहे है। यहां चौक को सिद्ध चौक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां गरबा खेलने मात्र से मनोकामना न केवल पूर्ण होती है बल्कि भाव और भक्ति लेकर आने वाले को माता स्वयं दर्शन देती है। यहां आज भी समाज के लोग &00 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन कर रहे है। यह गरबे बेहद खास इसलिए है कि यहां समाज के पुरुष ढोलक और तबलों की थाप पर गरबियां गाते है और महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में गरबे करती हुई मां भगवती की स्तुति करती हैं। महिलाएं चौक में पधराए हुए गरबा कलशों के चारों तरफ गरबा करती है तो ऐसा लगता है मानो गुजरात की परंपरा मेवाड़ में खिलखिला रही है। समाज के वृद्धजन दावा करते है कि सिद्ध चौक प्रांगण में गरबा होता है तो स्वयं जगदंबिका यहां मौजूद रहती है। इस गरबे में किसी भी तरह से फिल्मी गानों या डीजे म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं होता हैं।

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इस तरह होती है शुरुआत


शारदीय नवरात्र शुरू होने से पहले अमावस्या पर इस चौक की साफ सफाई की जाती है और उसके बाद एकम तिथि पर कुम्हारन गरबे लेकर आती है। समाज में जिसने बाधा ली होती है वो भी गरबे लेकर इसी चौक में आते है। शाम तक गरबा कलशों को रंग दिया जाता है फिर समाज की नन्ही बालिकाएं रंगोली बनाती है और माता जी की विधि-विधान से पूजा अर्चना और उनका आह्वान करने से साथ ही चौक में गरबे पधराए जाते है।


समाज के विद्वानों ने लिखी गरबियां : इतिहासकार


इतिहासकार श्रीकृष्ण जुगनू बताते है कि जो गरबियां यहां गाई जाती है वो समाज के ही बड़े-बड़े विद्वानों ने लिखी है। अक्षय कीर्ति व्यास, पंडित विश्वैसर शर्मा, पंडित निर्भय दिक्षित आदि ने कई गरबियां लिखी। अक्षय कीर्ति व्यास के घर पर गरबियां गाने वालों की मंडलियां जमा करती थी। जबकि पंडित निर्भय दिक्षित मंडलियों के साथ गरबियां गाने में सिद्धहस्त थे। गरबियों में स्वर, लय और ताल का मिश्रण होता है जो एक तरह का नृत्य गीत होता है। जिसमें देवी की महिमा का वर्णन होता है और उसी की ताल पर गरबा खेला जाता है।


गरबियों का अकूत खजाना है यहां : भट्ट


90 वर्षीय कन्हैया लाल भट्ट बताते हैं कि भट्ट मेवाड़ा समाज के पास विद्वानों द्वारा लिखी गई गरबियों का अकूत खजाना भी है। भावना प्रधान इन पारंपरिक गरबियो में वहीं लिखा गया है जो यहां साक्षात देखा गया है। कई गरबियों में तो सुरंगी फगनियां ओढ़ कर चौक में मां जगदंबिका को गरबे करते हुए देख लेने का जिक्र भी है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा का निर्वहन समाज के छोटे-छोटे ब‘चे भी कर रहे है। कई वर्षों से इसी चौक में आकर गरबे सुनने और करने से अब समाज के युवाओं को भी बाहरी पंडालों में होने वाले गरबों में कोई रुचि नहीं रही।

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