योगेश सुखवाल की रिपोर्ट
आप इस मंदिर की विडियो डाक्यूमेंटी देखना चाहते है तो इस लिंक पर क्लिक करें https://youtu.be/TLL7lLNwKqI
इस आर्टिकल में हम बताएंगे उदयपुर से पचास किमी दूर जगत का अंबिका माता मंदिर की विशेषताएं। यह भी बताएंगे की बोल्ड गल्र्स कंगना रनौत यहां क्यों आती है। जगत का अंबिका मंदिर की शिल्प सौंदर्य कला को देखकर लगता है कि ये मंदिर किसी फिल्म सिटी का एक हिस्सा है जो प्लाइवुड और थर्माकाॅल से बना है। इसकी वजह ये है कि बड़े-बड़े सफेद संगरमरमर के पत्थरों पर खुदाई इतनी बारीकी से हुई है कि लगता है कि या तो हम सपना देख रहे है या कोई थर्माकाॅल का मंदिर। फिर हम इसको हाथ लगाकर देखते है तो महसूस करते है कि ये मंदिर 10 वीं शताब्दी में बनाया गया एक भव्य मंदिर है, जो हूबहू उदयपुर के नागदा गांव के सास-बहु यानी सहस्त्रबाहु मंदिर की तरह इतिहास को समेटे हुए है। सास-बहु मंदिर से इसकी तुलना करना इसलिए जरूरी है कि क्यों कि हमने पूरे मंदिर के चप्पे-चप्पे को बड़े इत्मीनान से निहारा तो लगा कि मंदिर के प्रवेशद्वार पर बना मंडप बिल्कुल नागदा के सास-बहु मंदिर की तरह बना है। हालांकि ये प्रमाण नहीं है कि ये हूबहू हो सकते है मगर जो हमने महसूस किया वो बता रहे है। फिर आगे बढ़ते है तो फौलाद से बनी त्रिशूल की ओर से इशारा करते हुए इस मंदिर से आत्मीय भाव से जुड़े नरेंद्र कुमार चैहान बताते है कि ये फौलाद से बनी हैं। ये त्रिशूल बारिश, गर्मी और सर्दी में भी जैसी है वैसी ही रहती है। हमने देख कि इस त्रिशूल पर सफेद मालीपन्न्ो लगे हुए थे। इसके बाद हम आगे बढ़े तो मंदिर की कारीगरी को देखकर हक्के बक्के रहे गए। क्या गजब की कारीगरी और इसके साथ उस जमाने की सोच है कि जिस तरफ आप अपनी नजरें घुुमाते रहेंगे उस तरफ आपको यम, कुबैर, वायु, इंद्र, वरूण, प्रणय भाव में युगल, अंगड़ाई लेते हुए व दर्पण निहारती नायिका, क्रिड़ा करता हूं शिशु नजर आएगा। इसके अलावा वादन, नृत्य आकृतियां एवं पूजन सामग्री सजाए रमणी आदि कलात्मक प्रतिमाओं से मजाल है आपकी नजरें हट जाएं। इस मंदिर को यूं कह सकते है कि ये मूर्तियों का खजाना है। जगत का अंबिका प्रासाद मंदिर राजस्थान का मिनी खजूराहो है। तत्कालीन स्थापत्य कला के बेजोड़ स्तंभों पर टिका ये मंदिर राजस्थान के मंदिरों की मणिमाल का मोती है। सभा मंडप, अष्टभुजाओं वाला गुंबद, शिखरबंद, मूर्तियों का मुद्रा भाव इस को कोणार्क मंदिरों की श्रृंखला में लाकर खड़ा करता है।

कंगना को इसी मंदिर से मिलती है चुनौतियों से लड़ने की ताकत
महाराष्ट्र सरकार से तकरार के बाद एक बार फिर कंगना रनौत चर्चा में रही। गुगल से लेकर गली तक के आंगन में कंगना का बोल बाला रहा। बीएमसी के द्वारा गिराए गए अपने आॅफिस को श्रीराम मंदिर बताते वाली कंगना जगत के अंबिका माता की भक्त है। यहीं नहीं वो इस देवी को अपनी कुलदेवी मानती है। कंगना कहती है इसी मंदिर से उसको चुनौतियों से लड़ने की ताकत मिलती है। इस मंदिर से कंगना मातारानी की ज्योत लेकर गई थी। कंगना ने अपने गांव में इसी शैली में मंदिर बनाया है। 15 अक्टूंबर 2018 का दिन था और नवरात्रि की तृतीया, उस दिन कंगना यहां माता के दर्शन करने आई और हवन अनुष्ठान करके गई। बीते साल ही उसने अपने गांव हिमाचल के मंडी में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। कंगना कहती है कि सालों पहले यहीं से उसके पूर्वज गए थे।

हवा में झूलता और प्रकाश में झांकता मंदिर
जगत का अंबिका मंदिर राजस्थान के उदयपुर से करीब 50 किमी दूर है। आपको यहां आने के लिए उमरड़ा, झामेश्वर महादेव और झामरी नदी पार कर यहां पहुंचना पड़ता है। गांव के बाहर ही गिर्वा की पहाड़ियों के बीच मंदिर करीब 150 फीट लंबे ऊंचे परकोटे से घिरा हुआ है। पूर्व की ओर प्रवेष करने पर दुमंजिले प्रवेश मंडप पर बाहरी दीवारों पर आकर्षक प्रतिमाएं पत्थरों से झांकती हुई नजर आती है। मंडप में दोनों ओर हवा और प्रकाश के लिए पत्थर से बनी अलंकृत जालियां ओसिया देवालय के समान प्रतीत होती है। प्रवेश मंडप और मुख्य मंदिर के बीच खुला आंगन है। प्रवेश मंडप और मुख्य मंदिर केे बीच 50 फीट की दूरी है।

अंदर से ऐसा है मंदिर
इस मंदिर में सैकड़ों देवी-देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई है। दायीं ओर जाली के पास सफेद पाषाण में निर्मित नृत्य भाव में गणपति की दुर्लभ प्रतिमा है। ये प्रतिमा एक टन वजनी बताई जाती है। यहां के स्थानीय नागरिक बताते है कि ये प्रतिमा एक ही पत्थर से पूरे मंदिर से जुड़ी हुई है। इसी कारण कई बार चोरी होने पर ही ये प्रतिमा नहीं चुराई जा सकी। वजह ये भी है कि इस प्रतिमा के मंदिर से जुड़े होने से कोई इसको हिला नहीं सकता है। कहा जाता है मार्च 2000 में इस प्रतिमा को चुराने के लिए अंतरराष्ट्रीय चोर गिराहे गिया बंधु आए थे। गिरोह का एक सदस्य यहां से प्रतिमा चोरी करने में कामयाब रहा मगर वो नृत्य करते हुए गणपति को हिला नहीं पाया इसलिए इसके स्थान पर वो महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा उठाकर ले गए।

मध्यकालीन गौरवपूर्ण मंदिरों की श्ऱृंखला में सुनियोजित ढंग से बनाया गया जगत का अंबिका मंदिर मेवाड़ के प्राचीन उत्कृष्ठ शिल्प का बेजोड़ नमूना है। जीवन की जीवंतता एवं आनंदमयी क्षणों की अभिव्यक्ति मूर्तियों से स्पष्ट होता है। यहां से प्राप्त प्रतिमाओं के आधार पर इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान पांचवीं व छठी शताब्दी में शिव-शक्ति संप्रदाय का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इसका निर्माण खजुराहो में बने लक्ष्मण मंदिर से पहले करीब 960 इस्वी के आसपास माना जाता है। मंदिर के स्तंभों पर उत्कीर्ण लेखों से पता चलता है कि 11 वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासकक अल्लट ने मंदिर का जीर्णाद्धार करवाया था। यहां देवी को अंबिका कहा गया है। मंदिरको पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है।
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अगले आर्टिकल में आप पढ़ेंगे अंतरराष्ट्रीय चोर गिरोह गिया बंधु का मूर्ति चोरी का प्रकरण और गिरफ्तारी के बाद के वृतांत।