नाथद्वारा से दरियाव सिंह की लाइव रिपोर्ट
मैं चौपाटी पर खड़ा हूं। ये वहीं चौपाटी है जो वैष्णवों से कभी गुलजार रहती थी। यहां आने वाले वैष्णवों में सबसे ज्यादा गुजराती परिवार के होते थे और बाजार खिलखिलाकर हंसता था। लेकिन आज चारों तरफ मंजर कुछ अलग है। कुछ अमुक-अमुक दुकानें खुली है और जो खुली है उन पर भी दुकानदान सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं। मोती महल और प्रित पोल के दरवाजे से सेवाकर्मी जा रहे हैं। अभी लगभग साढ़े तीन बज रही है। चारों तरफ सिर्फ विरानियां और सन्नाटा पसरा है। इस दरमियान उत्थान झांकी के भाव से मैं हाथ जोडक़र दंडवत कर रहा हूं। मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं कि मेरे शहर की रौनक और रंगत फिर से लौट आए। कुछ देर विचार करने के बाद फिर से उसी रास्ते से सेवाकर्मी जो धोती और अंगरखी धारण किए हुए है वो कह रहे है बावा सौ सालन में ऐसो पहली बार होयो, न हंस सकरे न रो सकरे। वाकई सौ साल में पहली बार ऐसा मौका आया कि इतने लंबे समय के लिए वैष्णवों से भगवान दूर रहे। कहते है कि विक्रम संवत 1728 फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को यानी 20 फरवरी 1672 को श्रीनाथजी बावा पाट पर विराजमान हुए थे। मंदिर के अधिकारी सुधाकर शास्त्री बताते है कि 100 वर्ष पूर्व स्पेनिश प्लैग नाम की महामारी जरूर आई थी। तब तत्कालीन तिलकायत महाराजश्री ने मंदिर को आमजन के लिए बंद करवाया था लेकिन अल्प समय के लिए। मगर इस बार कोरोना महामारी ने करीब छह महीने के लिए दर्शन बंद करवा दिए। इस शहर में लॉकडाउन के पूरे चार महीने में एक भी कोरोना संक्रमित सामने नहीं आया। मगर जैसे ही अनलॉक में शहर फिर से पटरी पर आने की तैयारी कर रहा था कि मंदिर के पास के इलाके बोहरवाड़ी में पहला मामला सामने आया। इसके बाद लगातार कोरोना संक्रमित बढ़ते गए और फिर से शहर में लॉकडाउन लगा दिया गया। देश में जब अनलॉक वन, टू, थ्री चल रहा था तब भी शहर के हालात बिगड़ते जा रहे थे। इसी के मद्देनजर हमने शहर के हालात देखने का मानस बनाया कि आखरी किस स्तर पर शहर का पहिया थम गया है। तो आइए हम बताते है कोरोना काल में श्रीनाथ के शहर नाथद्वारा में श्रद्धालुओं के नहीं आने से व्यवसाय किस तरह से चौपट हो गया है।
ऋतुओं के अनुरूप राग, भोग और शृंगार
अष्टयाम सेवा का अर्थ है कि प्रतिदिन प्रभु के आठ दर्शन होते हैं। इसमें ऋतु के अनुरूप प्रभु को राग, भोग और श्रृंगार धराया जाता है। श्रीजी को आठों दर्शन में अलग-अलग भोग एवं श्रृंगार धराया जाता है। उसी के अनुरूप कीर्तनकार द्वारा अलग-अलग दर्शन में अलग-अलग प्रकार के कीर्तन गाए जाते हैं। प्रभु के दर्शन बंद होने के कारण वैष्णवजन के नहीं आ रहे है और इससे मंदिर की आय भी प्रभावित हुई है। मंदिर की आय का एक बड़ा हिस्सा वैष्णव के चढ़ावे से आता है। वही मंदिर द्वारा संचालित धर्मशालाओं कोटेज और गृहों से भी आय होती थी जो कि कोरोना वायरस के चलते मंदिर के पट बंद होने के कारण यह आय भी बंद हो गई।
खर्चा बढ़ रहा, इनकम बंद
मंदिर मंडल के मुख्य निष्पादन अधिकारी जितेंद्र कुमार ओझा ने बताया कि मंदिर को पिछले वित्तीय वर्ष में 90.68 करोड़ की आय हुई थी। जबकि 59.62 करोड़ खर्च हुए थे। इसी तरह 31.16 करोड़ की बचत हुई थी जो वर्ष 2017-2018 से 24.49 करोड़ अधिक थी। लेकिन इस वर्ष नुकसान होना तय है। अभी मंदिर मंडल की आय लगभग न के बराबर है जबकि गौशाला व कर्मचारियों की तनख्वाह पर दो करोड़ प्रतिमाह व अन्य खर्च लगभग 50 से 60 लाख रुपये प्रतिमाह हो रहा है। जानकारी के अनुसार मंदिर को चढ़ावे भेंट व प्रसाद की बिक्री व अन्य शहरों में स्थित मंदिरों से सालाना लगभग 30 से 40 करोड़ की आय होती है वही देश भर में फैले संपत्तियों जैसे दुकानों मकानों व धर्मशाला कोटा के किराए और एफडी पर ज से ब्याज से ४० से 5५० करोड़ की आय होती है। जबकि सेवा पूजा भोग वेतन भत्ते और संविदाकर्मियों की तनख्वाह को मिलाकर लगभग 50 से 60 करोड़ रुपए प्रति खर्च होते है। इन सब खर्चों से अनुमान लगाया जा सकता है कि जो बचत ढाई से ३ करोड रुपए प्रतिमाह होती थी व भी ना हो गया है। मंदिर अपनी जेब से खर्च कर रहा है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मंदिर को अब तक इन 6 महीनों में ३36 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
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शहर में पांच हजार श्रद्धालु अमूमन रोज दर्शन करने आते है। देशभर से ये आंकड़ा त्योहारों पर 50 से 60 हजार तक पहुंच जाता है। श्रद्धालुओं के नहीं आने से 6 महीने में करीब 60 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
अनुमानित नाथद्वारा शहर में 10 हजार परिवार में से 7 हजार से ज्यादा परिवार मंदिर से जुड़े हुए है। जिनका गुजर-बसर श्रद्धालुओं से ही होता है। 100 से ज्यादा निजी होटलों में 2 हजार 500 कमरे है ये सभी अभी खाली पड़े है।
30 से ज्यादा धर्मशालाएं-कॉटेज में करीब 700 कमरे है। ये सभी अभी खाली पड़े है।
मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद होने से होटल-धर्मशालाएं अब तक बंद है।
शहर में 1200 से ज्यादा ऑटो है। सभी का व्यापार श्रद्धालुओं के नहीं आने से अधिकांश बंद है।
शहर में 80 से ज्यादा भोजनालय, 100 से ज्यादा रेस्टोरेंट है। इनमें अधिकांश बंद है।
- – कई परिवार श्रीजी की छवि, पेंटिंग, पिछवाई, चित्रकारी, इमिटेशन ज्वैलरी, प्रसाद, बस, रिक्शा, टैक्सी, मंदिर की गौशाला से जुड़े है। यहां का अधिकांश व्यवसाय श्रीजी मंदिर से ही जुड़ा हुआ है। अभी श्रद्धालु नहीं आने से सब-कुछ मंदा है।
अब चलते है द्वारिकाधीश की नगरी कांकरोली

कांकरोली स्थित विख्यात श्री पुष्टिमार्ग की तृतीय पीठ प्रन्यास के श्रीद्वारिकाधीश मंदिर में फिलहाल सभी कार्य सुचारू चल रहे है। लेकिन इस महामारी ने मंदिर की व्यवस्थाओं को चलाना मुश्किल कर दिया है। यहां ये बताना जरूरी है कि मंदिर का मासिक खर्च लाखों से लेकर करोड़ों रुपए में होता है। द्वारिकाधीश मंदिर से जुड़े सभी कार्यों का खर्च जोड़ा जाए तो यहां भी प्रतिमाह ३० से ४० लाख रुपए खर्च हो जाता है। इस मंदिर में कृष्ण के चतुर्भुज स्वरूप द्वारिकाधीश की सेवा होती है। यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु विभिन्न अवसरों पर आते रहते है। यहां होली, दीपावली व जन्माष्टमी सहित पूरे वर्ष कोई न कोई आयोजन होते है। पूरे भारत वर्ष में इस पीठ से जुड़े करीब १५०0 मंदिर है लेकिन मुख्य पीठ कांकरोली स्थित श्रीद्वारिकाधीश मंदिर ही है। कोरोना काल में सरकार व प्रशासन के दिशा-निर्देशों की पालना में ये मंदिर लॉकडाउन काल से बंद है।
ये है यहां के मुख्य खर्च
मंदिर में करीब डेढ़ सौ कर्मचारी प्रभु की सेवा के लिए नियुक्त है। जिन्हें हर परिस्थिति में पूरा मानदेय अथवा पारिश्रमिक दिया जा रहा है। इसमें अब तक किसी भी तरह की कटौती नहीं की गई है। एक गोशाला भी इस मंदिर के जरिए संचालित होती है। इसके अलावा प्रतिदिन शृंगार व प्रसाद का भी बड़ा खर्च होता है। मंदिर का बिजली का बिल भी लाखों रुपए में आता है।