छाती तक पानी में डूबकर किसान आखिर कहां जाते है ?

0

सराड़ी-गींगला रपट छह माह तक रहेगी जलमग्न

सराड़ी से हितेश सराड़ी की रिपोर्ट

आप सराड़ी या फिर गींगला की तरफ जाएंगे तो ऐसे नजारे देखकर आप हक्के-बक्के रह जाएंगे। ये नजारे यहां आम हैं। इन सब नजारों से भी ज्यादा चैंका देंगे अगर आप ये जानेंगे की ये किसान छाती तक पानी को लपाकर आखिर जाते कहा है ?


तो चलिए हमारे साथ हम बताते है आपको कि सराड़ी-गींगला रपट पर बारिश के बाद छह महीने तक ऐसा नजारा क्यों बना रहता है। दरअसल सलूंबर उपखंड के सराड़ी की गोमती नदी पर ये रपट वर्ष 2013 में बनी थी। इसके तुरन्त बाद वर्ष 2014-15 में गोमती नदी पर बना खरका ब्रिज ढह जाने से किर की चैकी से बांसवाडा राज्यमार्ग- 53 सराड़ी रपट से डायवर्ट किया गया। भारी वाहनों व मार्बल के ट्रेलर की आवाजाही से कडूणी-सराड़ी की सड़क टूट गई व सराड़ी की रपट क्षतिग्रस्त हो गई। इसी बीच वर्ष 2016 में ज्यादा बारिश से अतिवृष्टि होने पर सड़क व रपट दोनों की इहलीला समाप्त हो गई। 12 सितम्बर 2016 को अतिवृष्टि से हुए नुकसान का जायजा लेने के निकले वर्तमान विधायक अमृतलाल मीणा, एसडीएम व कई प्रशासनिक आलाधिकारी।

इन सब ने राजस्थान स्टेट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन को टूटे पूल व रपट को तत्काल मरम्मत करने के निर्देश भेजे जो आज तक कागजों में ही दौड़ रहे है। हो सकता है कि निर्देश देने वाले और कागज रंगने वाले अधिकारियों का तबादल हो गया हो लेकिन अभी तक किसी ने भी सूध नहीं ली। इस वर्ष जयसमंद झील की भराव क्षमता करीब 25 फिट हो जाने से पानी का स्थरीकरण सराड़ी की रपट पर साढे़ तीन फिट से ऊपर हैं। काश्तकारों की जमीन नदी के दूसरे छोर पर होने से किसानों को नाव जुगाड़ की कश्तियां बनाकर किनारा पार करना पड़ता हैं और मवेशियों के लिए चारा लेकर आना होता है। इसके लिए कमर के ऊपर तक डूबकर पानी से निकलना पड़ता हैं। कई किसानों ने नाव खरीद कर नदी पार करना बताया लेकिन कब तक। ऐसे ही चलता रहेगा। क्यों आखिरकार काश्तकारों की आवाज वर्तमान सरकार के कानों में सुनाई नहीं दे रहे है। सवाल ये भी है कि जनप्रतिनिधियों को इस समस्या का पता होने के बावजूद क्यों कानों में रूई डालकर बैठे है। क्या सब के सब किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे है। अगर ऐसा ही रहा तो फिर सरकारें भी टूटी कश्ती में ही सफर करने लायक है। वाकई सरकारें भी इसी लायक है। बेचारे किसानों की तकलीफ सुनने वाला कोई नहीं है जो ये दिलासा दिला सके कि इस साल के बाद अगले साल समस्या का समाधान होकर रहेगा। वैसे भी दिलासा देने वाले वापिस नहीं आए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here