राजसमंद, चेतना भाट। चारभुजा तहसील के गौमती चौराहा से गुजरने वाली एवं राजसमंद झील को भरने वाली एकमात्र नदी गौमती नदी लगातार प्रदूषण का शिकार हो रही है। पंचायत की अनदेखी एवं डम्पिंग यार्ड के अभाव में स्थानीय ग्रामवासियों एवं आमजन द्वारा पूरे गौमती चौराहे का कचरा, गंदगी व सड़ी गली सब्जियों गौमती नदी में डाली जा रही है। जिससे जहां एक और प्रदूषण फैल रहा है वहीं नदी का पानी भी दूषित हो रहा है। कुछ स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों ने नदी की इस स्थिति पर दु:ख जताते हुए बताया कि लगातार कचरा व गंदगी डालने से नदी के पेटे में प्लास्टिक की थैलियों, कचरे एवं गंदगी का अम्बार लग गया है। जिससे नदी के पानी का बहाव भी कम हो गया है वहीं पानी भी दूषित हो रहा है। लोगों द्वारा नदी के पेटे में कचरा डालने से यहां आवारा मवेशियों का जमावड़ा लगा रहता है एवं मवेशियों द्वारा प्लास्टिक एवं कचरा को खा जाने से आए दिन अकाल मृत्यु हो जाती है। वहीं नदी के पेटे में मृत पशुओं को भी डाल दिया जाता है जिसके कारण दुर्गन्ध उत्पन्न होने से यहा खड़ा रहना भी दूभर हो जाता है। ग्रामीणों के अनुसार अगर पंचायत द्वारा गौमती नदी से कहीं दूर भूमि आवंटित कर डम्पिंग यार्ड बना दिया जाएग तो इस समस्या का समाधान हो सकता है। इससे नदी दूषित होने से भी बच सकती है एवं पशुधन के नुकसान से बचाव के अलावा पर्यावरण का संरक्षण में भी सहायता मिल सकती है। इस बारे में कई बार पंचायत को अवगत कराने के बावजूद भी कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। कुछ स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों ने जिला कलक्टर अरविंद कुमार पोसवाल को पत्र लिखकर गौमती नदी से दूर कहीं डम्पिंग यार्ड बनाने जाने की मांग की है।
खुद ही प्रदूषण बढ़ाते पर्यावरण संरक्षण के पूजारी
यूं तो कहने को पर्यावरण संरक्षण के नाम पर ढेरों संघ व संगठनों के कार्यकर्ता आदि पर्यावरण संरक्षण की जोरों-शोरों से पैरवी करते हुए झूण्ड के रूप में एकाध पेड़-पौधों की पत्तियों को पकडक़र अखबारों में पर्यावरण की सुर्खियां बटौरते नजर आते है। लेकिन जब बात वास्तिविक रूप में पर्यावरण संरक्षण को लेकर आती है तो सब के मूंह पर चुप्पी बैठ जाती है या अपवाद पर उतर आते है। सरकार एवं न्यायालय सहित बड़े-बड़े पर्यावरण संरक्षण संगठनों के बनाए सारे नियम कायदे थोथे साबित हो रहे है। बात चाहे गौमती नदी के पेटे की हो या शहर के बीचों बीच अपना अस्तित्व खोती प्राकृतिक नदी या फिर ऐतिहासिक जलाशय हर तरफ केवल गंदगी एवं कचरे के ढेर लगाने की परम्परा का चलन हो गया है। कहीं गौमती जैसी पावन नदी को मार्बल स्लेरी वेस्ट का गौदाम बना दिया जाता है कचरे और फैक्ट्रियों का वेस्ट डाला जाता है तो कही गंदगी का अम्बार से या अतिक्रमण से नदियों का अस्तित्व की मिटा दिया जाता है तो कही झील या तालाबों में श्रद्धां या परम्परा की आड़ में फूल पत्तियां या कचरा आदि प्रवाहित कर दिया जाता है तो कहीं घरों से निकलने वाला मल मूत्र प्रवाहित कर दिया जाता है। प्राकृतिक नदी नालों को कचरा पात्र बना डाला गया है। इतना कुछ होने के बावजूद भी ना तो लोग समझादारी दिखाते है और ना ही प्रशासन इस विषय पर कोई खास ध्यान देता है। इसी कारण प्रदूषण फैलने से कई विषैले प्रदार्थ पनपते है और ना ना प्रकार की गंभीर बीमारियों से जान तक गंवानी पड़ती है।