2016 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन को क़रीब 29 लाख ज़्यादा लोगों ने वोट किया फिर भी वो चुनाव हार गईं और डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने थे. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ट्रंप के पक्ष में इलेक्टोरल कॉलेज रहा. इलेक्टोरल कॉलेज की व्यवस्था अमरीकी संविधान में है. इलेक्टोरल कॉलेज के 270 वोट का जादुई अंक काफ़ी अहम है और राष्ट्रपति बनने के लिए इसे हासिल करना ज़रूरी होता है. अगर इस बार भी यह ट्रंप के पक्ष में जाता है तो जो बाइडन के लिए निराशाजनक ही होगा. ट्रंप 270 के जादुई अंक तक कई रास्तों से पहुंच सकते हैं. इलेक्टोरल कॉलेज के ज़रिए 538 इलेक्टर्स को चुना जाता है. ये इलेक्टर्स ही अमरीकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का फ़ैसला करते हैं. जब वोटर्स तीन नवंबर मंगलवार को वोट करने जाएंगे तो वे अपने पसंदीदा उम्मीदवार के इलेक्टर्स को अपने स्टेट में चुनेंगे. जो उम्मीदवार इलेक्टोरल वोट्स का बहुमत हासिल करेगा वह अमेरिका का अगला राष्ट्रपति होगा. 538 इलेक्टर्स में 435 रिप्रेजेंटेटिव्स, 100 सीनेटर्स और तीन डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के इलेक्टर्स होते हैं. हर चार साल बाद अमरीकी वोटर्स राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं. सभी लेकिन दो राज्यों में जो उम्मीदवार स्टेट वोट को बहुमत से हासिल करने में कामयाब रहता है वह स्टेट इलेक्टोरल जीत लेता है. नर्बास्का और मेईन में इलेक्टोरल वोट आनुपातिक प्रतिनिधित्व से निर्धारित होता है. इसका मतलब यह हुआ कि इन दोनों राज्यों सबसे ज़्यादा वोट पाने वाले को दो इलेक्टोरल वोट मिलेंगे (दो सीनेटर्स) जबकि बाक़ी बचे इलेक्टोरल वोट कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट को आवंटित कर दिए जाएंगे. इस नियम से दोनों कैडिडेट को नर्बास्का और मेईन में इलेक्टोरल वोट मिलने की संभावना रहती है जबकि बाक़ी बचे 48 राज्यों में विजेता को सभी इलेक्टर्स मिल जाते हैं.